खुद के भीतर
खुद की तलाश करता मन
अक्सर अपने से हारता है।
बाहर की दुनिया में जिसे देखो
अक्सर दुतकारता है।
ऐसे में जीवन को सुख कहना
कल्प्नाओं की रौ में बहना
क्या हमें मंजिल तक पहुँचाएगा।
या रास्ता चलते-चलते
किसी धुंध मे समा जाएगा।
इअस प्रश्न का उत्तर
कब से खोज रहा हूँ
लेकिन कहीं से जवाब नही आता।
इस लिए जीवन जीना
हरिक की विवश्ता बना हुआ है
इस लिए कोई यहाँ
खुशी का गीत नही गाता।
ै
Sunday, July 22, 2007
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